इतिहास
वर्तमान गोरखपुर न्यायालय न्यायिक प्रशासन के क्रमिक विकास का परिणाम है। प्रारंभ में मुंसिफ, गोरखपुर की मंसूरगंज में अपनी सीट थी, लेकिन 1862 में तहसील मुख्यालय को महाराजगंज में स्थानांतरित कर दिया गया और अदालत को गोरखपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। मानद मुंसिफ के दो न्यायालय भी थे। 1903 में प्रयोग के तौर पर ग्राम मुंसिफ को गोरखपुर तहसील में नियुक्त किया गया। 1909 में योग्य व्यक्तियों की कमी के कारण 90 मंडलों के लिए ऐसे मुंसिफों की संख्या 24 तक सीमित कर दी गई थी। लगभग 1909 के आस-पास गोरखपुर और देवरिया जिले के क्षेत्रों को मिला कर गोरखपुर जिले का गठन किया गया। जिला और सत्र न्यायाधीश, गोरखपुर के पास गोरखपुर के पूरे जिले में दीवानी और आपराधिक दोनों अधिकार क्षेत्र थे और बस्ती जिले से आपराधिक अपील सुनने की शक्तियां भी थीं। गोरखपुर, बांसगाँव और देवरिया के लिए एक अधीनस्थ न्यायाधीश और तीन मुंसिफों की अदालतें भी संबंधित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करती थीं।
दिनांक 1 अगस्त, 1945 को बस्ती में एक अलग न्यायालय बनाया गया और उसके बाद गोरखपुर न्यायालय में गोरखपुर और देवरिया जिले का क्षेत्राधिकार था । तब गोरखपुर जिले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश सिविल और सत्र न्यायाधीश, न्यायाधीश लघु वाद न्यायालय, सिविल न्यायाधीश के स्थायी न्यायालय एवं गोरखपुर और बांसगांव के मुंसिफ न्यायालय मौजूद थे। एक अतिरिक्त दीवानी न्यायालय और चार अतिरिक्त मुंसिफ की अस्थायी अदालतें भी गोरखपुर के तत्कालीन न्यायपालिका में काम करती थीं। बाद में 12 सितंबर, 1964 और 02 नवंबर, 1990 को क्रमशः देवरिया और महाराजगंज भी अलग-अलग जजशिप बने।